कुछ अधूरे कुछ पूरे सपने आंखों में थे और पहुंच थी नज़रों की आसमान तक
जोश नया था, हौसले बुलंद थे, शुरू होने वाला था एक नया वक़्त
पापा की खुशी, मम्मी की हंसी, दादी का सपना कंधो पे लिए अपने
कॉलेेज के उस पहले दिन सफेद कोट को देखते आया एक एहसस नया पूरे होने जा रहे हैं सब सपने
पलके झपकते बीत गए ये पांच साल
दीक्षांत समारोह में बैठे आया मेरे मन में एक अजब सवाल
अब तक थी सुनी मैंने अपनी प्रशंसा, संघर्ष व धैर्य की कथा
पर बगल में जो बैठे है आज मुस्कुराते हुए क्या थी उनके मन की व्यथा
अरे! लड़का है, मेडिकल में है, क्या उम्र हुई होगी, कमाना शुरू नहीं किया???
लड़की है, डॉक्टर बन रही, अब तक शादी का नी सोचा???
इन सब सवालों से जूझते हुए
कुछ का जवाब देते, कुछ अनसुना करते हुए
साथ खड़े रहे डटकर सफर में वो साथ हमारे
खुदा का तो पता नहीं, थे ये दोनों मेरे अटूट सहारे
कभी परीक्षा से डरकर, कभी पढ़ाई से थककर
कहा मैंने अब नहीं होता ये सब मुझसे
तो बड़ी सरलता से कहा उन्होंने
बेटा लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
कभी जब हार गई मै कदम ज़रा लड़खड़ाए,
हिम्मत देते हुए कहा उन्होंने
उन्नति का कारोबार कहां सपनों के दम पर चलता है
जो आज है वो कल क्या होगा यही समय बतलाता है
जो भी है चलता जाता है
सफर हुआ पूरा कहां अभी पर किया है एक पड़ाव मैंने पार
खड़ी मंजिल पे हूं मैं, पर जीत की खुशी इनकी आंखो में है
इतना बेलौस है इनका प्यार
डॉक्टर की ये उपाधि इनके बलि दानों के उपरांत है
आज इन्हीं के आशाओं, धीरज हिम्मत का ये दीक्षांत है
-wordicted daactar ✍️👩⚕️
